1. बेटी या बेटा?
आसिफ बड़ी देर से बेचैनी के साथ ऑपरेशन थिएटर के बाहर चहल कदमी कर रहा था. अब तक तो खबर मिल जानी चाहिए थी. देर क्यूँ हो रही है? कही कोई गड़बड़ तो नहीं? ये हस्पताल बहुत बेकार है. इतना तो महंगा है. वैसे इस बात की उसे कोई फिकर नहीं थी, वजह कि उसकी पत्नी जो इस वक़्त अन्दर थी, एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में अधिकारी है, सो सारा खर्चा उसकी कंपनी उठा रही थी. लेकिन इस देरी से उसे बेहद बेचैनी हो रही थी.
किरण को अन्दर गए लगभग एक घंटा हो चुका था. अभी तक कोई खबर नहीं. उसकी बेचैनी हर नए मिनट के साथ बढ़ती जा रही थी. थिएटर से निकलने वाले हर व्यक्ति की तरफ वह सवालिया निगाह उठाता, वह उसे अनदेखा कर के चला जाता तो फिर वह परेशान हाल अपनी जगह पर खड़ा हो जाता और दो पल ठहर कर फिर से चहल कदमी करने लगता.
मगर बेचैनी थी कि कम होने का नाम नहीं ले रही थी और अन्दर से कोई खबर नहीं आ रही थी. उसका दिल किया थिएटर का दरवाज़ा ठेल कर अन्दर ही घुस जाए और देखे कि ऑपरेशन किस तरह चल रहा है. लेकिन दरवाजे पर खडा छह फुटा तकड़ा गार्ड उसके इस इरादे को सोचते ही नाकाम कर देने के लिए काफी था.
तभी उसने देखा कि एक थिएटर अटेंडेंट बाहर निकला और ठिठक कर खडा हो गया. लगा जैसे वह किसी की तलाश में है. आसिफ ने सवालिया निगाह उसकी तरफ उठाई. आज रविवार है सो सिर्फ इमरजेंसी ऑपरेशन ही हो रहे हैं, जिसके कारण आसिफ के आलावा सिर्फ एक और पुरुष ही वहां था. अटेंडेंट ने ऊंची आवाज़ में कहा, “ मिसेज किरण के साथ कौन है?”
आसिफ सरपट उसकी तरफ लपका, “ मैं हूँ. क्या हुआ है?”
आसिफ के मन में उत्सुकता तो थी ही, मन विभोर था, उत्सुक भी, खुश भी और संदेह से भरा भी. विशवास भी था कि आखिरकार पैंतालीस की परिपक्व उम्र में वह बाप बन रहा था. उसने सुना अटेंडेंट ने कहा, “लड़का हुआ है सर.”
आसिफ के मन में तरंग उठी. फ़ौरन जेब में हाथ डाल कर एक हज़ार का अलग रखा हुआ नोट निकाला और उसके हाथ पर रख दिया. यह नोट उसने इसी काम के लिए अलग से वॉलेट से निकाल कर रखा हुआ था.
उसे पूरा यकीन था कि लड़का ही होगा. प्रेगनेंसी के दौरान जब उसने डॉक्टर से सोनोग्राफी के वक़्त बच्चे का लिंग जानना चाहता था तो डॉक्टर के मना करने पर कहा था," लड़का ही है न?"
डॉक्टर के मुस्कुरा देने पर उसने मान लिया था कि लड़का ही होगा. तभी तो सब तैयारी कर रखी थी. उसने तो कपडे भी लड़के के हिसाब से ही खरीदे थे. पालना नीले रंग का था. किरण को तो वह कोई काम भी नहीं करने देता था. खाना बिस्तर पर खिलाता था. जितना वक़्त घर पर रहता पूरी कोशिश करता कि सारा वक़्त किरण के साथ बिताये.
अभी कुछ दिन पहले शाम के वक़्त जब वह अपने रोजाना के तीन पेग लगा चुका था तो दिन भर ऑफिस में काम कर के लौटी थकी हुयी किरण के पास आ कर बिस्तर पर बैठ गया था.
किरण हल्की सी नीद में थी. आसिफ के बैठ जाने से उसकी नींद खुल गयी और उसने मुस्कुरा कर आसिफ को देखा.
“तुम जल्दी से मेरे बच्चे को दुनिया में ले आओ. तुम समझ नहीं सकती मैं कितनी बेसब्री से इसके दुनिया में आने का इंतजार कर रहा हूँ.”
किरण बेहद थकी हुयी थी, काम के बोझ से, गर्भ के बोझ और आसिफ के सपनों को ढोने के बोझ से. वह सिफ मुस्कुराई और थकी हुयी आँखों से उसे देखती रही.
आसिफ उस शाम बेहद रूमानी और भावुक हो आया था. किरण के लिए यह काफी हैरान कर देने वाला था. वह चुपचाप सिर्फ सुनती और देखती रही. आसिफ कहता रहा कि कैसे बच्चे की परवरिश वह करेगा. किस तरह अपने सारे सपने उसकी आँखों में सजाएगा. किस तरह अपने सारे अधूरे सपने उसके ज़रिये पूरे करेगा. यह भी कि उसका बच्चा दुनिया में आसिफ खान के बेटे के नाम से महशूर होगा.
एक बारगी दिल किया किरण का कि उसके इस निर्बाध चल रहे एकालाप को कुछ विराम दे, लेकिन जानती थी कि शराब के नशे में आसिफ का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण कम ही रहता है. सो चुप रही.
दूसरे, आने वाले बच्चे को लेकर उसका भी मन उत्साहित तो था ही. सो मीठे भीगे-भीगे मन से, थकी-हारी किरण उसकी बातें सुनती हुयी कच्ची नींद और जागने के बीच डूबती उतराती रही. एक बार उसका दिल किया कि अपने अजन्मे बच्चे के लिए इतना लाड दिखा रहा उसका पति थोडा लाड उसकी तरफ भी दिखाये, उसे प्यार करे, चूमे या फिर उसका हाथ ही पकड़ ले जिससे कि उसके भी डरे हुए और थके हुए मन को कुछ सुकून मिले.
लेकिन आसिफ को पत्नी की चिंता उस वक़्त नहीं थी. वह तो आने वाले दिनों की खुशियों में मग्न खालिस बाप था. पति और प्रेमी की जिम्मेदारियों और भावनाओं से पूरी तरह आज़ाद. ऊंचे आसमान में उड़ने वाला लम्बे पंखों का मालिक एक परिंदा.
इस वक़्त ऑपरेशन टेबल पर पडी किरण पिछले तीन घंटों से प्रसव पीड़ा से जूझ रही थी. कल शाम ही वह अपनी डॉक्टर से मिल कर आयी थी और डॉक्टर ने बताया था कि अभी प्रसव में दस-पन्द्रह दिन और लगेंगे. थकी हुयी, घबराई और खुशी के मिले जुले एहसास से भरी अपने बेडौल शरीर को घसीटती आसिफ के साथ घर लौट आयी थी.
आसिफ पिता बनने का ख्वाब बहुत दिनों से देख रहा था. ऐसा नहीं कि किरण माँ नहीं बनना चाहती थी लेकिन आसिफ का उत्साह इतना अधिक था कि किरण कई बार सोच में पड़ जाती थी. क्या वाकई माँ बनने को स्त्रियाँ ज्यादा उत्सुक रहती है या मर्द बाप बनने को ज्यादा उत्साहित रहते हैं?
फिर सोचती कि शायद आसिफ की उम्र ज्यादा हो गयी है इसलिए उसके यहाँ अधैर्य है. या शायद वह स्वभाव से ही धीरज वाला नहीं, इसलिए उसे ऐसा लगता है.
खैर! इस वक़्त फिर बहुत जोर से दर्द उठा तो वह चीखते-चीखते रह गयी. उसने खुद पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन एक चीख निकल ही गई.
डॉक्टर निर्मला उसे ढाढस बंधा रही थीं. कुछ देर पहले ही उन्होंने अपना फैसला सुनाया कि कुछ कम्पलीकेशन के चलते किरण का सिजेरियन करना होगा. ऑपरेशन टेबल पर लेटी किरण तैयारियां देख रही थी. उसे एपिड्युरल लगा दिया गया था. जिसकी वजह से उसका छाती के नीचे का सारा शरीर तेज़ी से सुन्न हो रहा था. एक पर्दा खींच दिया गया था और वह डॉक्टर निर्मला के अलावा नर्सों, ऑपरेशन असिस्टेंट्स और एनेस्थीसिया डॉक्टर के मास्क्स से ढके चेहरे देख पा रही थी. साथ ही औजारों की खनक सुन रही थी.
“डॉ. बिजलानी, आपने बताया नहीं आप नए घर में कब शिफ्ट कर रहे हैं?” यह डॉक्टर निर्मला की आवाज़ थी.
“अभी कुछ तय नहीं हुआ. वाइफ चाहती हैं, गृह प्रवेश हो जाये उसके बाद. अब देखें कब होता है. डेट तय होते ही आप को बताऊंगा. आप को भी आना होगा डॉक्टर.’ डॉ बिजलानी उसके पैरामीटर्स पर नज़र रखे रखे बोल रहे थे.
“ज़रूर आयेंगें. गिफ्ट क्या लेना है ये भी आप बता देना.” इस बार सब का एक सम्मिलित ठहाका थिएटर में गूँज गया था.
किरण सब सुन रही थी और समझ रही थी कि ये सब उसका ध्यान बटाने की कोशिश के तहत था.
डॉ निर्मला ने पूछा था, “किरण डिअर, कोई परेशानी तो नहीं हो रही किसी तरह की भी? “
किरण को सिर्फ एक ही परेशानी थी इस वक़्त. उसका शरीर एक मशीन की तरह महसूस हो रहा था उसे. उसका आधे से ज्यादा जिस्म डॉक्टरों के दिशा-निर्देश में उसका साथ छोड़ चुका था. बचा हुआ तेज़ी से सोच भी रहा था और कुंद भी हो रहा था. उसे कोई चिंता नहीं थी इस समय. वह पूरी तरह से खुद को इस टीम के हवाले कर चुकी थी. इस वक़्त वह सिर्फ एक मन थी, दिमाग थी और एक आत्मा. उसके जिस्म से एक और नया जिस्म जन्म लेने वाला था. इस वक़्त उसकी सारी आंतरिक संवेदना, चेतना, अनुभूति, अभिव्यक्ति; सब इसी एक ख्याल के इर्द-गिर्द लिपटी थी.
उसने हाथ उठाना चाहा लेकिन दोनों हाथ उसकी पहुँच से बाहर ड्रिप से जीवन पाने की जद्दो-जहद में उलझे थे. उसने आहिस्ते से कहा था, “ नहीं, डॉक्टर मैं ठीक हूँ. बस कुछ महसूस नहीं हो रहा.”
“ दैटस वैरी गुड. डिअर. यू आर सच अ ब्यूटीफुल पर्सन. यू आर गोइंग टू बी अ मदर ऑफ़ अ ब्यूटीफुल चाइल्ड.”
सुन कर किरण को रोमांच हो आया. वह कुछ बोलना चाहती थी. लेकिन अचानक उसने महसूस किया कि एकाएक पूरा थिएटर जैसे स्तब्ध हो गया था. एक भारी गंभीर और उत्सुकता भरी चुप्पी सभी चेहरों पर छा गयी थी, कुछ ही सेकंड्स के अन्दर. सभी किरण के पर्दे के पीछे छिपे जिस्म की तरफ एकाग्रता से ताक रहे थे. वह भी शान्त हो कर इस चुप्पी के साथ एकाकार हो गयी. उसे खुद अपनी चुप्पी सुनायी दे रही थी. और सुन रही थी अपनी शिराओं में बहते हुए खून की आवाज़, जो लगातार उसके कानों के परदे पर मानों सरक रही थी.
इस शांत, उत्सुक और सफ़ेद चुप्पी के कुछ क्षण ही बीते होंगें कि उसने एक बहुत धीमी सी आवाज़ सूनी. वह चौंकी. यह एक शिशु के रोने की आवाज़ थी. बेहद धीमी लेकिन ऐसी दमदार कि उसका सीना इस आवाज़ की मासूम धमक से भर गया, उसका मन प्रेम में भीग गया और उसकी आत्मा ने मानो किसी और ही लोक का साक्षात्कार कर लिया.
उसने महसूस किया शिशु को कई हाथों ने थामा. एक-एक कर कई नज़रों से हो कर गुज़री उसकी देह और फिर किरण के खुद अपने जिस्म से कुछ निकाले जाने का एहसास हुआ. एक बार फिर डॉ निर्मला की खूबसूरत आवाज़ आयी, " मुबारक हो किरण, बेटी की माँ बन गयी हो. देखो कैसी खूबसूरत है तुम्हारी बेटी.”
और उसकी छाती पर एक नन्ही सी बिलकुल गुलाबी फूल जैसी एक छोटी सी लडकी रख दी गई. वह दंग रह गयी. कितनी छोटी सी है. कैसे बड़ी होगी? “
उसने नज़र भर के प्यार से उसे देखते हुए कहा, “बहुत छोटी सी है. बहुत छोटी है."
डॉ. निर्मला ने कहा, " हाँ, बहुत छोटी है.”
बच्ची को उसकी छाती से हटा लिया गया.
शिशु विशेषग्य डॉ. कपाडिया ने कहा, "किरण तुम्हारी बच्ची बिलकुल परफेक्ट है. इतनी ही छोटी है, जितने अक्सर नवजात शिशु होते हैं. अब तुम आराम करो. मेरी सलाह है नीद ले लो. तुम दोनों की सेहत के लिए अच्छा होगा.”
उसके सामने ही एक टैग बच्चे की कलाई में बाँधा गया, एक उसकी कलाई में और एक नर्स बच्ची को लेकर चली गयी. डॉ कपाडिया ने बताया, “हम बच्ची को कुछ घंटे नर्सरी में रखेंगे. फिर तुम्हारे पास ले आयेंगे. तब तक तुम आराम करो.”
किरण ने लम्बी सी सांस ली और औजारों की आवाजें सुनती हुयी नीद में गाफिल हो गयी. बीच बीच में डॉक्टरों की बातें और उससे पूछे गए छोटे-छोटे सवालों के बीच वह नींद और जागने के बीच विचरती रही.